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दक्षिण भारत में है अनोखा मंदिर, किन्नरों का होता है 18 दिन का उत्सव, महाभारत से जुड़ी है इसकी कहानी, अर्जुन के पुत्र की होती है पूजा

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दक्षिण भारत में है अनोखा मंदिर, किन्नरों का होता है 18 दिन का उत्सव, महाभारत से जुड़ी है इसकी कहानी, अर्जुन के पुत्र की होती है पूजा

रिलिजन डेस्क. तमिलनाडु के विल्लुपुरम जिले के कुवगम गांव में अरावन देवता की पूजा की जाती है, कई जगह इन्हें इरावन के नाम से भी जाना जाता है। अरावन देवता महाभारत के प्रमुख पात्रों में से एक थे और युद्ध के दौरान उन्होंने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

अरावन देव को किन्नरों का देवता माना जाता है, इसलिए दक्षिण भारत में किन्नरों को अरावनी के नाम से पुकारा जाता है। इस मंदिर की सबसे अनोखी बात यह है कि यहां पर अरावन देवता का विवाह किन्नरों से किया जाता है। यह विवाह साल में एक बार किया जाता है और विवाह के अगले दिन ही अरावन देव की मृत्यु हो जाने के साथ ही वैवाहिक जीवन भी खत्म हो जाता है। इसका संबंध महाभारत काल की एक अनोखी घटना से है।

अर्जुन और नाग कन्या उलुपी के पुत्र थे अरावन :

महाभारत की कथा के अनुसार, एक बार अर्जुन को द्रोपदी से शादी की एक शर्त के उल्लंघन के कारण इंद्रप्रस्थ से निष्कासित करके एक साल की तीर्थयात्रा पर भेजा गया था। इंद्रप्रस्थ से निकलने के बाद अर्जुन उत्तर-पूर्व भारत की ओर गए, जहां उनका विवाह उलूपी नाम की एक नाग कन्या से हो जाता है। विवाह के कुछ समय बाद उलूपी एक पुत्र को जन्म देती है, जिसका नाम अरावन रखा जाता है। पुत्र जन्म के पश्चात अर्जुन उन दोनों को वही छोड़कर अपनी आगे की यात्रा पर निकल जाते हैं। अरावन नागलोक में अपनी मां के साथ ही रहता है। युवा होने पर वो नागलोक छोड़कर अपने पिता के पास आता है। तब कुरुक्षेत्र में महाभारत का युद्ध चल रहा होता है इसलिए अर्जुन उसे युद्ध करने के लिए रणभूमि में भेज देता है।

महाभारत युद्ध में अरावन ने दी थी स्वयं की बलि :

महाभारत युद्ध में एक समय ऐसा आता है जब पांडवो को अपनी जीत के लिए मां काली के चरणो में स्वेचिछ्क नर बलि हेतु एक राजकुमार की जरुरत पड़ती है। जब कोई भी राजकुमार आगे नहीं आता है तो अरावन खुद को स्वेचिछ्क नर बलि हेतु प्रस्तुत करता है, लेकिन वो शर्त रखता है की वो अविवाहित नहीं मरेगा। इस शर्त के कारण बड़ा संकट उत्त्पन हो जाता है क्योकि कोई भी राजा यह जानते हुए की अगले दिन उसकी बेटी विधवा हो जायेगी, अरावन से अपनी बेटी की शादी के लिए तैयार नहीं होता है। जब कोई रास्ता नहीं बचता तो भगवान श्री कृष्ण स्वंय को मोहिनी रूप में बदलकर अरावन से शादी करते है। अगले दिन अरावन स्वयं अपने हाथों से अपना शीश मां काली के चरणो में अर्पित करता है। अरावन की मृत्यु के पश्चात श्रीकृष्ण उसी मोहिनी रूप में काफी देर तक अरावन की मृत्यु का विलाप भी करते हैं।

उस समय श्रीकृष्ण पुरुष होते हुए स्त्री रूप में असावन से शादी रचाते हैं, उसी प्रथा के चलते किन्नर अरावन को अपना आराध्य देव मानते हैं और इस मंदिर में आज भी अरावन का विवाह किन्नरों के साथ किया जाता है।

यहां मनता हैं किन्नरों का सबसे बड़ा उत्सव :

तमिलनाडु के कई हिस्सों में भगवान अरावन के मंदिर बन चुके हैं, लेकिन इनका सबसे प्राचीन और मुख्य मंदिर विल्लुपुरम जिले के कूवगम गांव में है। कूवगम गाँव में हर साल तमिल नव वर्ष की पहली पूर्णिमा को 18 दिनों तक चलने वाले उत्सव की शुरुआत होती है। इस उत्सव में पूरे भारत वर्ष और विदेश से किन्नर इकठ्ठा होते हैं। पहले 16 दिन मधुर गीतों पर खूब नाच गाना होता है और हंसी खुशी शादी की तैयारी करते हैं।17वें दिन पंडित द्वारा विशेष पूजा होती है, जिसके बाद अरावन देवता के सामने मंदिर के पंडित भगवान की ओर से किन्नरों के गले में मंगलसूत्र पहनाया जाता है। जिसे थाली कहा जाता है। अरावन की मूर्ति से शादी रचाते है। अंतिम दिन यानि 18वें दिन सारे कूवगम गांव में अरावन की प्रतिमा को घूमाया जाता है और फिर उसे तोड़ दिया जाता है। उसके बाद दुल्हन बने किन्नर अपना मंगलसूत्र तोड़ देते है साथ ही चेहरे पर किए सारे श्रृंगार को भी मिटा देते हैं। सफेद कपड़े पहन लेते हैं और खूब रोते हैं। उसके बाद अरावन उत्सव खत्म हो जाता है।



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